"अरे! वेदप्रकाशप्रकाश, तुम यहां ? वह भी इतने लंबे अरसे बाद. मुझे तो लगा था कि तुम मुझे भूल जाओगे ."
"क्या गिरधारी तू भी ना, अपने नाम की तरह थोड़ी थोड़ी देर में लाल हो जाता है."
दोनों मित्र पूरे 10 वर्ष बाद मिल रहे है. वेदप्रकाशप्रकाश जी लंदन के जाने-माने व्यापारी हैं. वहां उनका एक जहाज भी चलता है. मतलब रुपए पैसे की कोई समस्या नहीं है.
वही गिरधारीलाल सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त एक साधारण व्यक्ति है. गांव में अपनी जमीन पर खेती का काम कर समय गुजार रहे हैं.
"क्यों यार इस बार भी एक-दो दिन के लिए आए हो या….?"
"नहीं-नहीं मेरे यार, इस बार चार दिन तुम्हारे यहां ही हूं."
"फिर तो अच्छा है, इस बार तुम सब से मिलना, सब जगह देखना."
"बिल्कुल"
हर बार वेदप्रकाशप्रकाश थोड़े समय के लिए आते थे जिससे उनके बचपन के मित्र गिरधारीलाल नाराज हो जाते थे और इस बार तो पूरे 10 वर्ष बाद आए थे.
वह इस बात को केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि उनकी प्रसन्नता का स्तर कितना होगा.
दोनों के परिवारों में बहुत भिन्नता थी.
जहां वेदप्रकाशप्रकाश का परिवार छोटा परिवार था, वहीँ गिरधारी संयुक्त परिवार वाला था जिसका वर्णन समय-समय पर मिलता रहेगा.
"आओ, अब सीधे घर चलेंगे"
"हां, वैसे एयरपोर्ट तक आने का शुक्रिया, कितना दूर पड़ता है अपना घर?"
"यही कोई दो घंटे की दूरी पर."
"अच्छा"
"हां तो तब तक तुम बताओ वहां क्या क्या कारनामा किए हो?"
(हंसी का ठहाका )
"अरे कुछ खास नहीं, बस अपनी कंपनी है 'इंडिगो' नाम की, सॉफ्टवेयर का काम है और वहां वैसे कपड़ों के निर्माण की भी है"
"अच्छा है भाई, हम तो यहां …. जो करते है, तुम्हें दिखाएंगे ना और बताओ भाभी जी कैसे हैं?"
"संध्या! अच्छी है, तुम्हें पता है मेरा बेटा भी है, अपनी कंपनी का ही हेड मैनेजर है, एमबीए की और सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग पढाई की है."
"फिर तो तुम पर ही गया होगा है ना."
"हां, वैसे गाड़ी किराए की है?"
"अरे नहीं नहीं, अपनी ही है, लोकल में टूर ट्रेवल का काम है अपना."
"अच्छा है"
"हां, अरे भाई राम जल्दी चलाओ ना, हमारे मित्र 4 दिन के लिए ही आए हैं."
(दोनों ओर से हंसी के ठहाके)
वेदप्रकाशप्रकाश अपने माता पिता की इकलौती संतान हैं, उनके माता-पिता भी बाद में उन्हीं के साथ जाकर बस गए थे. जहां बीमारी के चलते उसके पिता की मौत हो गई थी.
"लो भाई. पहुंच गए."
"क्या यह सारे खेत और बगीचे अपने हैं?"
गाड़ी से उतरते हुए वेदप्रकाशप्रकाश ने चारों ओर नजरें दौड़ाते हुए पूछा
"हां, वो वहां कतार में घर नजर आ रहे हैं, वह हमारे खेत में मजदूर किसानों के हैं, उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए वही भेजता हूं जहां हमारे घर के बच्चे जाते है."
"अच्छी बात है भाई, और इतनी बड़ी हवेली …"
"हां, ईश्वर की कृपा से और बाप दादाओं के साथ की वजह से हमारा परिवार इसी में रहता है."
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