Download App

Chapter 1: पहली मुलाक़ात...

रात के बारह बज चुके थे तनवीर (तन्नू) इलाहाबाद से कानपुर पहुंचा रोडवेस की बस से। उसके बस से उतरते ही एक अधेड़ उम्र का आदमी उसकी ओर हाँथ बढ़ा कर बैग को थामते ही बोला " कहाँ चलेंगे बाबूजी, मैं रिक्शे वाला" दूसरे हाँथ से रिक्शे की ओर इशारा करते हुए। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दिसम्बर की ठंड और भूख ने उसके गले को बैठा दिया हो तभी तो वो भागता हुआ पहुंचा था अपनी सवारी के पास। तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा " बड़ी हवेली चमन गंज जाना है, कितने लोगे"? 1978 की उस कड़ाके की ठंड में केवल चार रिक्शे वाले और दो तांगे वाले ही दिख रहे थे हर जगह कोहरे ने चादर चढ़ा रखी थी। रिक्शे वाले ने कहा " 10 रुपए दे दीजिएगा, ठंड भी तो है सरकार"। तन्नू ने रिक्शे की तरफ़ चलते हुए कहा " ठीक है चलो "।

रिक्शे पर सवार होते ही तन्नू ने अपने जैकेट से सिगरेट का पैकेट निकाला एक सिगरेट उसमें से निकला और पैकेट वापस जैकेट की जेब में रख दिया उसी जेब से लाइटर निकाला और सिगरेट जलाई। एक लम्बा कश लगा कर अन्दर खिंचा और राहत की साँसों के साथ सिगरेट का धुआं बाहर छोड़ा। उसका चेहरा तनाव रहित लग रहा था। उसने रिक्शे वाले से पूछा "रात भर रिक्शा चलाते हो क्या, परिवार नहीं है क्या शहर में"? रिक्शे वाले ने जवाब दिया "नहीं बाबूजी , दो बजे तक चलाएंगे फ़िर कमरे पर जा कर आराम करेंगे, सुबह 9 बजे से Elgin mill में काम करते हैं, यहीं पास के गांव के हैं इसलिए परिवार नहीं रखा शहर में"। "अरे वाह! तुम तो काफ़ी मेहनती मालूम पड़ते हो, कितना पढ़े लिखे हो", तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए पूछा ।" मैट्रिक पास हैं बाबूजी" रिक्शे वाले ने जवाब दिया। सिगरेट का आखिरी कश ख़त्म होते ही चमन गंज पहुंच गया था तन्नू। रिक्शे वाले ने हवेली के पास रिक्शा रोकते ही कहा" लीजिए पहुंच गए बाबूजी बड़ी हवेली।" तन्नू ने अपनी जेब से बटुवा निकाला उसमें से दस रुपए का नोट रिक्शे वाले को दिया फ़िर बटुवा जेब में रखते ही बैग को कंधे पर टांग लिया और हवेली की तरफ़ बढ़ने लगा।

हवेली के गेट पर चौकीदार बैठा था उसे तन्नू के आने की ख़बर शायद पहले से ही थी इसलिए तो उसने नाम सुनते ही गेट खोल दिया। तन्नू हवेली के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ा। चौकीदार ने उसके हाथ से बैग लेकर अपने कंधे पर टांग लिया था और दूसरे हाथ में लालटेन थाम रखी थी। दरवाजे पर पहुंच उसने कुंडा खटखटाया।

कुछ देर में दरवाजे को एक 18 साल की सुन्दर लड़की ने खोला। उसने तन्नू कि ओर देखते ही एक नादान सी मुस्कान अपने चेहरे पर झलकाई। तन्नू भी उसकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोला "तुम शहनाज़ हो न, डॉक्टर अंकल की बेटी, कितनी बड़ी हो गई हो।" शहनाज़ ने उसे उसकी अम्मी के कमरे की ओर चलने का इशारा करते हुए कहा "आप भी तो कितने खूबसूरत हो गए हैं" उसने जारी रखा " अब आंटी को देखने वाला कोई नहीं था इसलिए मुझे पापा ने रुकने को कहा, लेकिन अब आप भी आ गए हैं तो एक से भले दो"।

उसने तन्नू की अम्मी के कमरे का दरवाज़ा खोला उसकी अम्मी रज़ाई के अंदर लिपटी पड़ी थीं। उन्हे Alzheimer नाम का दिमागी रोग हुआ था उनकी हालत ज़्यादा नाज़ुक थी इसलिए तन्नू को तुरन्त बुलवाया गया था।

तनवीर नवाबों के परिवार से ताल्लुक रखता था और पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला दिलवाया गया था। उसके वालिद ने गुज़रने से पहले सब कुछ उसके नाम पहले ही कर दिया था क्यूँकि वह अपनी बेगम की तबीयत के बारे में जानते थे। यूँ तो तनवीर की अम्मी लखनऊ की हवेली में रहा करती थीं लेकिन अपने शौहर के गुज़रने के बाद कानपुर की बड़ी हवेली में रहने लगीं थीं।

तन्नू ने शहनाज़ से अपनी अम्मी की सारी जानकारी ली क्यूँकि वह सो रही थीं इसलिए उसने जगाना सही नहीं समझा।

शहनाज़ ने तन्नू को उसके कमरे की ओर ले जाते हुए कहा " तुम इस हवेली में पहली बार आए हो न, इसलिए तुम्हें बता रही हूँ नीचे बेसमेंट में कभी मत जाना । सब कहते हैं उसमें एक रूह रहती है। तुम्हारी अम्मी को भी यहाँ नहीं आना चाहिए था यहाँ आते ही उनकी तबीयत ज़्यादा खराब हो गई।"

" तुम भी न बच्चों जैसी बातें करती हो शहनाज़ आज के ज़माने में कहीं कोई मानेगा इन सब बातों को। अच्छा ये बताओ तुम्हें कितनी बार पकड़ा उस रूह ने " तन्नू ने मुस्कुराते हुए पूछा ।

" मज़ाल है मेरे सामने कोई रूह आ जाए मेरे गले में पीर बाबा का ताविज़ है, तुम्हारे लिए भी ला दूँगी" शहनाज़ ने इतराते हुए कहा।

उसने एक कमरे के दरवाजे के सामने रुकते ही कहा" लीजिए हुज़ूर आपका कमरा आ गया "। तन्नू ने दरवाजा खोला और अंदर बिस्तर की ओर बढ़ा वो काफ़ी थक चुका था उसने तुरंत ही ख़ुद को बिस्तर पर फेंक दिया। शहनाज़ ने उसकी ये हरकत देखी और लालटेन को टेबल पर रख दिया जो बिस्तर के पास ही था फ़िर तन्नू की ओर देखते हुए कहा "अच्छा अब मैं चलती हूँ, तुम भी आराम से सो जाओ सुबह बातें होगीं"। तन्नू ने उसकी ओर देखते हुए कहा "गुड नाइट" शहनाज़ ने भी इसका जवाब गुड नाइट बोलकर दिया।

तन्नू को रात में प्यास लगी उसकी नींद खुल गई उसने घड़ी में देखा तो सुबह के तीन बजे हुए थे वो बिस्तर से उठकर रसोई की तरफ़ बढ़ा। इतने में एक आवाज़ ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वो आवाज़ शायद बेसमेंट से ही आ रही थी। आवाज़ धीरे धीरे तेज़ होने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपने हांथों से दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से पीट रहा हो। तनवीर के कदम रुके नहीं वो सीधा बेसमेंट की ओर लपका और दरवाज़े के सामने खड़े होकर आश्चर्य के स्वर में पूछा "कौन है, कौन है अंदर"? तन्नू ने अपने कान दरवाज़े पर रख दिए ताकि सुन सके कि अन्दर से कोई आवाज़ आती है या नहीं लेकिन इतने में दो भयानक हाँथ दरवाज़ा तोड़ते हुए बाहर निकल कर तन्नू को गर्दन सहित पकड़ लेते हैं। तन्नू अपनी आँखो को बंद कर के ज़ोर से चिल्लाया "बचाओ, बचाओ" जब आँखें खोलीं तो देखा सुबह हो चुकी थी , सूरज सिर पर आ चुका था और चिड़ियों की आवाज़ों से सारा वातवरण उत्साहित हो रहा था।

अगली सुबह तनवीर (तन्नू) अपने बिस्तर से उठ कर फ्रेश होने के बाद सीधा डाइनिंग टेबल पर जा पहुंचा। शहनाज़ पहले से ही वहाँ मौजूद थी और जूस पी रही थी। तन्नू ने उससे भूमिका बांधते हुए पूछा "अच्छा कल जो तुम उस बेसमेंट वाली रूह के बारे बात कर रही थी शहनाज़ इसका और भी कोई चश्मदीद गवाह है या ये तुम्हारे ही दिमाग की उपज है"। "तुम्हें क्या लगता है मैं क्या कोई पागल हूँ जो अपने से भूत आया, भूत आया चिल्लाउंगी सिर्फ मैं ही नहीं और भी गवाह हैं जिन्होंने ये दावा किया है कि उन्होंने रूह को देखा है " शहनाज़ ने काफ़ी आत्मनिर्भरता से जवाब दिया। " तो ठीक है आज इस रहस्य को भी और नज़दीक से जानने का मौका मिलेगा, पहले ज़रा नाश्ता कर के अम्मी से मुलाकात कर लूँ फ़िर हम दोनों मिलकर इस मसले का तहकिकात करेंगे" तन्नू ने काफ़ी उत्साहित होकर कहा। " निहारिका ओ निहारिका , ज़रा नवाब साहब के लिए नाश्ता लगाना" शहनाज़ ने पुकारते ही तन्नू की तरफ देख कर आँख मार दी। तन्नू भी अपनी मुस्कान न रोक पाया वो उस शख्स को देखने के लिए उत्साहित था जिसका शहनाज़ ने नाम पुकारा था। निहारिका वाह नाम सुनते ही लगता है ज़रूर किसी अप्सरा का होगा तन्नू ने मन ही मन सोचा और मुस्कुराने लगा।

थोड़ी देर बाद एक हसीन युवती नाश्ता लेकर अन्दर से आई, उसे देखते ही तन्नू के होश फाख्ता हो गए। वो बला की खूबसूरत थी कोई भी उसे देखकर नहीं कह सकता था कि वह घर कि नौकरानी है। कटिले नैन नक्श, गोरा रंग, लम्बा कद और गदराया बदन। उसे देखते ही कोई भी लड़का उसका दीवाना बन जाता। निहारिका ने नाश्ते की प्लेट तन्नू के सामने रख दी और साथ ही टेबल पर गोभी, आलू, मूली, मेथी आदि के तरह तरह के पराठे थे। तन्नू ने बटर नाइफ से थोड़ा बटर निकाल कर प्लेट में डाला और सोचने लगा कौन सा पराठा पहले खाऊँ। इतने में शहनाज़ बोली" ये गोभी वाला पहले खाओ", उसने एक गोभी का पराठा उसकी प्लेट में डाल दिया। तन्नू ने खाना शुरू किया "वाह! क्या बात है, ऐसा गोभी का पराठा आज तक नहीं खाया" तन्नू ने पराठा मुँह में डालते हुए कहा। "अच्छा है न, इस हवेली में काम करने वाले रसोइए बहुत अच्छा खाना पकाते हैं " शहनाज़ ने तुरंत ही कहा।

"और कुछ चाहिए नवाब साहब को" निहारिका ने तन्नू की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पूछा। तन्नू ने भी मुस्कुराते हुए नहीं के इशारे में गर्दन हिला दी, निहारिका समझ गयी और अपना काम करने वापस जाने लगी।

तन्नू ने अपना नाश्ता ख़त्म किया और टेबल से सीधा उठकर शहनाज़ के साथ अम्मी के कमरे की तरफ़ बढ़ने लगा। कमरे में पहुँचते ही देखा अम्मी एकटक छत को देख रही थी। उसने अम्मी को देख कर पूछा "अम्मी अब कैसी तबीयत है आपकी"। लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उसने तीन चार बार और पूछा लेकिन बिलकुल सन्नाटा। इतने में शहनाज़ बोली " मैंने सवेरे का डोस दे दिया है जैसा पापा ने बताया था, थोड़ी देर बाद इन्हें नींद आ जाएगी, इनके लिए आराम करना बहुत जरूरी है"। शहनाज़ ने जैसा बोला था वैसा ही हुआ थोड़ी देर बाद तन्नू कि अम्मी की पलकें भारी होने लगीं जिन्हें अब खुला रखना तनवीर की अम्मी के बस में नहीं था और वह गहरी नींद में सो गईं।

तन्नू और शहनाज़ अपने तय किए हुए कार्य पर लग गए उन्होंने हवेली के सभी नौकरों को बुलवाकर पूछताछ की। उनमें से ज़्यादातर का यही कहना था कि उस बेसमेंट में से कभी कभी किसी के चलने की आवाज आती है। उन्होंने इस बात का भी ज़िक्र किया कि उनमें से कुछ ने वहां तेज़ लाल रोशनी जलते हुए देखा है।

सभी से पूछताछ करने के बाद तन्नू ने शहनाज़ की तरफ देख कर कहा "इसका मतलब यह है कि इस हवेली में सही में कोई रूह है लेकिन तेज़ लाल रोशनी का क्या मतलब है, अच्छा शहनाज़ तुम्हें पता है इस हवेली को कब खरीदा गया या इससे पहले इसमें कौन रहता था, इन सब बातों का पता चलना बहुत जरूरी है तभी किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है"। शहनाज़ ने कुर्सी से उठ कर तन्नू के इर्दगिर्द चलते हुए अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ते हुए कहा" जहाँ तक मेरी जानकारी में है तुम्हारे अब्बू ने इस हवेली को गुज़रने से पाँच साल पहले ही लिया था उन्होंने इस हवेली को अपने पुरातत्व विभाग के दोस्त और सह कर्मचारी डॉ ज़ाकिर से खरीदा था, उन्हे लंदन की यूनिवर्सिटी से बुलावा आ गया था और उन्होंने जाने से पहले ये हवेली तुम्हारे अब्बू को बेच दी। शहनाज़ ने बोलना जारी रखा " तुम्हारे अब्बू के गुज़रने के बाद घर का खर्चा हवेली के रख रखाव में दिक्कत आने लगी थी इसलिए मुनीम जी और बाकी के जिम्मेदार सदस्यों ने ही लखनऊ की हवेली बेचने का फैसला किया था फिर भी खर्चा चल ही रहा है कई जगह खेती से अच्छी खासी आमदनी जो हो जाती है। तुम्हारे अब्बू और डॉ जाकिर इस हवेली में अपने प्रयोग की कुछ वस्तुएं भी रखते थे, मैंने ऐसा सुना है "।

तन्नू काफ़ी गंभीरता से इस बड़ी हवेली के खयालों में खो गया।

©Ivan_Maximus_Edwin


Load failed, please RETRY

The End Write a review

Weekly Power Status

Rank -- Power Ranking
Stone -- Power stone

Batch unlock chapters

Table of Contents

Display Options

Background

Font

Size

Chapter comments

Write a review Reading Status: C1
Fail to post. Please try again
  • Writing Quality
  • Stability of Updates
  • Story Development
  • Character Design
  • World Background

The total score 0.0

Review posted successfully! Read more reviews
Vote with Power Stone
Rank NO.-- Power Ranking
Stone -- Power Stone
Report inappropriate content
error Tip

Report abuse

Paragraph comments

Login